Prem Hindi Stories:एक वन के समीप एक लकड़हारा रहा करता था। लकड़हारा था सो जंगल से उसका गहरा नाता था या यूं कह लो मतलब का नाता था। मतलब गहरा था सो नाता भी गहरा था। जंगल का उस से दुश्मनी का नाता था मगर जंगल स्वभावतः दुश्मनी निभा नहीं पाता था लकड़हारे को लकड़ी काटते में कभी चोट लगती तो वह खुले दिल से औषधीय गुणों वाली जड़ी बूटी सौंप देता और अपने इस तरह के व्यवहार पर कभी पछताता भी न था। जंगल अनगिनत पेड़ों वनस्पति व जीवों का समूह था। बस एक लकड़हारा ही वहां अनुपयुक्त होता था।
लकड़हारे का साथ देती एक कुल्हाड़ी। गज़ब की सुडौल मज़बूत धारदार कुल्हाड़ी। मानो लकड़हारे का समूचा व्यक्तित्व समूची ताकत वही हो। कुल्हाफी उसके हाथ में किसी औजार सी न थी वह उसी की ताकत का विस्तार थी। उसकी बाजू का ही अंग। दोनों का तालमेल कुछ ऐसा खौफ़नाक कि बड़े से बड़े मज़बूत पेड़ों के पत्ते उनको देख थर थर कांपने लगते। डाल कराह उठती और तना सिसकने लगता। कुल्हाड़ी को लकड़ी के स्वाद का नशा सा था। और लकड़ी काटना लकड़हारे का ज़ुनून। लकड़हारे को कभी कभी लगता जैसे कुल्हाड़ी में उसकी जान हो उसे लगता अपनी कुल्हाड़ी के बिना वह जी नहीं सकता। कुल्हाड़ी में कोई भाव न थे। जब तक वह उसकी ओर हाथ न बढ़ाता कुल्हाड़ी अपनी जगह निर्विकार पड़ी रहती। लकड़हारे को कुल्हाड़ी की ये उदासीनता कभी न ख़ली।
इन दिनों लकड़हारा एक बड़ा सा पेड़ काटने की जुगत में था। रोज़ाना जाकर उसको थोड़ा थोड़ा काटा करता। पेड़ हरा भरा था मगर लकड़हारा अंदर बाहर से बड़ा रूखा सूखा ठूँठ सा था शायद उसके पेशे का असर था। वह जैसे ही पेड़ पर चढ़ने को तत्पर होता, न जाने कहाँ से एक सुकोमल प्यारी सी चिड़िया लपक के आ जाती
लकड़हारे के पेड़ पर चढ़ते ही वह कुछ इस तरह से चिल्लाने लगती मानो कोई सांप या बिल्ली
देख लिया हो और संगियों को खतरे से आगाह कराने लगती।
लकड़हारा जो ठूँठ सा नीरस था, चिड़िया की घबराहट
समझ गया, उसके मन में, चिड़िया के बच्चे सा सुकोमल
एक भाव पैदा हुआ ज़्यों सूखे पेड़ में वसंत का स्वागत करती
कोई नई कोंपल फूटी उसमें प्रेम ने जन्म लिया , पेड़ के स्पर्श से उसको अहसास हुआ, चिड़िया पेड़ और लकड़हारे में से प्रेम के लिए हमेशा पेड़ को ही चुनेगी।
सद्बुद्धि जागी; उसने कुल्हाड़ी से माफ़ी मांगी और उसको किनारे रख दिया, आश्चर्य कि कुल्हाड़ी को इस बात से कोई फ़र्क न पड़ा। कुल्हाड़ी किनारे रखते ही लकड़हारे का मन मन चिड़िया के पंखों से भी हल्काऔर सुकोमल हो उठा अब वह आजीविका के लिए लकड़ी नहीं काटता ; पेड़ उगाता है, फलों वाले पेड़।
कुल्हाड़ी को पड़ा या न पड़ा किंतु, चिड़िया को इस बात से बहुत फ़र्क पड़ा, अब वह लकड़हारे के कंधे को पेड़ की
डाल समझने लगी है और उसकी अंगुलियों को फुनगी
लकड़हारा अब लकड़हारा नहीं रहा फलदार पेड़ हो गया है।
दोनों एक दूसरे से प्रेम में हैं।
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