इस बार भी खूब ठंड पड़ी। सर्दियाये मौसम की मार ने कई लोगों की जान ले ली। झुग्गी-झोपड़ियों में उसकी कृपा विशेष रूप से बरसी। हाँ, सदा की तरह। सदा की तरह अनेक लोग काल-कवलित।
सड़क किनारे फटी कथरी ओढ़, अलाव की मद्धिम पड़ती गर्मी के किनारे सोए लोगों को भी सर्दी ने लील लिया। जो दुकानों की शटर गिरने के बाद उसके सामने पसर गए थे, उनमें से भी कई कहाँ बचे।
बच गए लोगों में वह किशोर कमासुत भी था। उस कमासुत को कुत्ते से बहुत घृणा थी। वह हलवाई की दुकान के बाहर बुझते भट्ठी के पास सोने की कोशिश में। एक कुत्ता भट्ठी की गर्मी बाँटने आ पहुँचा। उसने दुरदुराया, कुत्ता भागा।
वह लेट गया। कुत्ता फिर हाजिर। उसने कुत्ते को दूर तक खदेड़ दिया। थोड़ी देर में कुत्ता फिर भट्ठी के सामने।
उससे रहा नहीं गया। उसने लाठी उठाई और कुत्ते को पीटते हुए भगाकर ही चैन की साँस ली, अब कुत्ता नहीं आएगा। भट्ठी की ठंडी पड़ती आग के सामने वह खुशी-खुशी पसर गया। बेसुध सोया।
सवेरे-सवेरे सूर्य की आँखें खुलीं। भट्ठी एकदम ठंडी पड़ गई थी। वह और कुत्ता लिपटे पड़े थे एक-दूसरे की देह की गर्मी को साझा करते हुए।
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