Jid achchhee hai Hindi Kahani:”बाबूजी! पन्द्रह दिनों की ही तो बात है, अभी रुक जाओ! श्राद्धपक्ष में नए भवन की शुरुआत करना ठीक नहीं।”
” क्यों ठेकेदार भाई! श्राद्ध पक्ष तो बीती पीढ़ी को गौरव देने व पुन:स्मरण करने के दिन हैं, ये अशुभ कैसे हो सकते हैं? हमारे बड़े हमारा अहित कैसे होने दे सकते हैं? वे तो आशीर्वाद ही देंगे, हमारी खुशी में खुश होंगे…”
” आपकी इच्छा है बाबूजी! मैंने तो आज तक श्राद्ध पक्ष में कभी कोई नया मकान शुरू नहीं किया और न ही लोग करवाते हैं।”
” सोच लो भाई ! तुम्हारी मर्जी है! अगर तुम काम शुरू करना नहीं चाहते, तो मैं किसी और से बात करुं…”
“नहीं बाबू जी! ऐसा मत करना, हम काम करने को तैयार हैं,” एक साथ कई मजदूरों के भूखे पेट और दीन चेहरे उसकी आंखों के समक्ष आ खड़े हुए थे।
“एक बात पूछूं बाबूज्ञी… आपकी ऐसी भी क्या मजबूरी है।”
“मेरी जिद ही समझो!”
जिद अच्छी है बाबू जी! काश ऐसी जिद…
श्राद्धों में अपने साथ -साथ कई मजदूरों की रोजी-रोटी सुनिश्चित देख ठेकेदार ने विनम्रता से हाथ जोड़ दिए।

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