पीनट बटर के धोखे में सोया बटर ले आई जो बच्चों ने खाने से मना कर दिया। अब खुले डिब्बे का क्या करूँ?
मैंने डिब्बा उठाया और रसोई में बर्तन मांज रही विमला को पकड़ा दिया। इससे पहले मैं कुछ कह पाती, वह चहक कर बोली, “बोरनबीटा?”
“नहीं,ये मक्खन है, ब्रेड पर लगा कर बच्चों को खिला देना।” मैंने उदारता का शहद मुँह में भरकर कहा।
“अच्छा? वो क्या है कि डब्बा एको जैसा है न,ताई करके हमें लगा,बोरनबीटा है।”
“तूने देखा है उसका डिब्बा?”
“तो? घर मे है त देखेंगे न? बच्चे अर सोनू के पापा सवेरे ओहि का दूध पीकर जात रहे न।”
“और तू?”
” हम तो तो आप जैसन के घर चा, मालपानी उड़ाए रहे। पर उनन का क्या, बढ़ते बच्चे है अर सोनू के पापा हाड़ तोड़ मजूरी करत रहे।”
“..”
“भाभी जब बोरनबीटा न पीते रहे तो रात को देई चसकती रही,फेर सराब को भागते थे।”
“अब नही पीते?”
“कसम त ना खाई, मर्द जात ठहरी,कदी कदाक पी बी ले हैं।”
“लेकिन विमला, दूध का जुगाड़ हो जाता है ?”
शहद की जगह कौतूहल ने ले ली ।
“हओ! कर ही लेए हैं किसी तरो।दोनो जन और किसलिए कमाते हैं भाभी,सवेरे एक किलो दूध लेते है चारों जन एक एक कप दूध पिये रहे बाकी चाय खातर छोड़ दे रहे।”
“मैंने सुना है, ठेकेदार पूरा पैसा नही देते?”
” काहे न देंगे, होय है कोई कोई ससुर बेईमान,पर सारे नई होते,फेर ओनकी भी तो गरज है काम करबाब की । न दें तो कौन काम करैगो इनको?”
“मजबूरी तो तुम लोगों की भी होती है न ,रोज काम थोड़े मिलता होगा?”
“सो तो हई है भाभी, पर सच्ची बात ए ई है के करन बारे को काम का टोटा ना है। सोनू के पापा त पेले से पेले ढूंढ के रखे रहे।।भाभी मेनत और मानदारी से काम करबे वाले कि सब तई पूछ होवे। कोई निठल्ला करन न चाहे तो और बात।”
शहद कलेजे में उतर चुका था। विमला के गर्वोन्नत ललाट से शुरू हुई सिंदूरी रेखा नए भारत तक पहुंच रही थी।

(Visited 1 times, 1 visits today)

Republish our articles for free, online or in print, under a Creative Commons license.