‘‘कहॉं गया ?……………..कहॉं गया ?’’

‘‘चला गया’’

‘‘अरे तुमने उसे जाने दिया ?हम तो पुलिस को फोन कर आये हैं ।’’

‘‘मुझे लगा उससे बड़े चोर तो हम स्वयं हैं । इसीलिए…………………….’’

‘‘अरे । पागल हो गये हो क्या ?’’

‘‘क्यों ?”

“………..सच्चाई का सामना क्या कर सकेंगे आप लोग ?’’

‘‘कैसी सच्चाई ?’’

‘‘तुम्हारी मासिक आय तीस हजार रूपये है । लेकिन हर महीने कोई न कोई नई चीज घर आती है ।…………….और……………..चालीस हजार मासिक आय वाले शर्मा जी को शौक है हर वर्ष अपना सोफा बदलने का जो तीस हजार से कम का नहीं होता जबकि उनका परिवार लम्बा चौड़ा है।’’

‘‘अरे………………हमारी आमदनी और खर्चे से तुम्हें क्या लेना देना ?’’ शर्मा जी तैश में आ गये ।

‘‘क्षमा करें शर्मा जी, मैं किसी पर अंगुली नहीं उठा रहा । पूछना चाह रहा हूॅं कि क्या कोई जानता है उस चोर ने क्या चुराया था ?’’

‘‘……………………..’’

‘‘जानते हैं, उसने मेरे घर से थोड़ा सा खाना अपने भूखे भाई-बहनों के लिये चुराया था ।……………….जबकि………………….इन सुख-सुविधाओं को पाने के लिए हम सब भी तो…………………….’’

सभी एक-एक कर सिर झुकाए खिसकने लगे । अपने अन्दर छुपे बड़े चोर का सामना करना क्या आसान था ।

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