सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी लगन से सबकी आवभगत कर रहे थे l सामाजिक संगोष्ठी में ‘ गरीब तबके के उत्थान एवं बालश्रम से जुड़े बच्चों के भविष्य , भूख , महंगाई ‘ की बातें प्रमुखता से कही जा रही थीं l इस राष्ट्रीय आयोजन में चल रहे कवि सम्मलेन में कवियों ने भी बच्चों पर खूब कवितायेँ पढ़ीं l अंत में सभी आगंतुकों के लिए सुरुचि भोज का आयोजन भी था l
चुन्नू – मुन्नू दिन भर के भूखे थे , वे भी भोज – भीड़ में चुपके से पहुँच गये और डिस्पोजल थालियों में भोजन लेकर शीघ्रता से उदर पूर्ति कर ही रहे थे तभी आयोजक की निगाहें इन दो भूखे , दरिद्र चिथड़ों में लिपटे बालकों पर पड़ी l बस फिर क्या था , क्रोध के अंगार चुन्नू – मुन्नू की पीठ पर , कभी गाल पर तड़ातड़ बरसने लगे l चुन्नू – मुन्नू के हाथ का निवाला और थाली दूर जा गिरी l ढुलके हुए आंसू को पीकर दोनों बाहर निकल आये l ठंड जोरों पर थी l वही सामाजिक कार्यकर्ता आयोजक फुटपाथियों को कंबल बाँटने और फोटो खिंचाने निकले l चुन्नू – मुन्नू के साथ कंबल देते हुए आयोजक ने फोटो खिंचवाये l दूसरे दिन चुन्नू – मुन्नू की बड़ी बड़ी तस्वीर आयोजक के साथ अखबार में छपी l चुन्नू – मुन्नू को अखबार पड़ा मिल गया l वे अपनी फोटो चाँटा मारने वाले आयोजक के साथ देखकर मुस्कुराये l वे अखबार लेकर आयोजक की दुकान पर पहुँचे और उसे अपनी फोटो दिखाते हुए जोर से हँस पड़े l आयोजक को बीती घटना याद हो आई l उसे लगा जैसे उसके गाल पर चाँटे पड़ गये हों l
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