जयंत हमेशा सहमा हुआ रहता था। हंसी तो कभी उसके चेहरे पर दिखती ही नहीं थी । पढ़ाई में वह होशियार था। 25 साल में उसकी नौकरी लग गई और नौकरी लगते ही उसकी शादी हो गई । उसकी पत्नी ज्योति को उसकी सूरत में कुछ दबाव नज़र आया । ज्योति ने पूछा तो जयंत ने उसे बताया “ जब मैं 7 साल का था, एक दिन मैं अपने पिता जी का हाथ थामे जा रहा था। पता नहीं कैसे मेरा हाथ छूट गया और मैं अंजान लोगों के चंगुल में फंस गया। दो पल में ही मेरा जीवन बादल गया । मेरे पापा मुझे डूंड रहे थे और मैं एक ट्रक में था। मेरा मुंह बंद था और मैं छटपटा रहा था लेकिन उनकी गिरफ्त से छूट नहीं पाया । उन लोगों ने मुझे खेतों के बीच बनी एक झोंपड़ी में बंदी बना लिया। वे चारों हर रोज वहीं खाते, पीते और बचा खाना मेरे आगे फैंक जाते और हर रोज मुझे सताते ।जाती बार बाहर से ताला लगा जाते। मुझे पता नहीं मैं कितने महीने या कितना साल उनका बंदी रहा। एक दिन मैं भागने में सफल हो गया । घर आया तो पिता जी नहीं रहे थे। माँ ने समझाया था ” पुरानी सब बातें भूल जाओ और पढ़ाई में दिल लगाओ ।“ मैंने पढ़ाई में दिल तो लगा लिया लेकिन पुरानी बातें नहीं भूल पाया। मैं बदले की आग में सुलगता रहा। मुझे आज तक नहीं पता वह जगह कौन सी थी लेकिन उन वहशी चार लोगों की सूरत कभी नहीं भूल पाया।“ ज्योति ने जयंत का हाथ थाम लिया और बोली “ मैं कभी आपका हाथ नहीं छूटने दूँगी।“ जयंत के चेहरे पर मुस्कान खिल गई थी । आज जयंत अपनी ही कैद से आज़ाद हो गया था , ये बहुत जरूरी भी था ।
Republish this article
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NoDerivatives 4.0 International License.