’कल पीटे गये थे। आज फिर तुम आ गये। शर्म नहीं आती क्या?

’हूं तो क्या हुआ? पत्रकार हूं। अपना काम तो करूंगा ही।’

’तुम अपना काम नहीं करते,सिर्फ हमारे आन्दोलन को बदनाम कर रहे हो। किसानों को देशद्रोही कहते हुए और न जाने क्या-क्या झूठे अरोप-प्रत्यारोप लगा-लगा कर बस गोदी मीडिया का काम कर रहे हो। भाग जाओ वर्ना आज फिर पिटोगे।’

’कोई गम नहीं। जितना मुझे पीटोगे उतनी हमारे चैनल की टीआरपी बढ़ेगी। आज की मुख्य बाइट यही चलेगी कि अराजक किसानों ने चौथे स्तम्भ को पीटा। जैसे कल चलाई थी। हम तो यही चाहते हैं कि किसी तरह से तुम्हारा आन्दोलन कमजोर करके खत्म किया जाए।

अब किसान खामोश और खासे ऊहापोह थे।

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