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जिजिविषा

“क्या देख रही हो, माला?” “यह कोई नयी बेल है। अपने आप उग आयी है और देखो कितनी जल्दी- जल्दी बढ़ रही है।“ “अरे, वह तो जंगली है।उखाड़ फेंको उसे।“ “जंगली है, सो कैसे?” “अरे तभी तो बिना देख भाल के इतनी तेजी से बढ़ रही है।“ “हरियाली तो यह भी फैला रही है और […]

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साझा चूल्हा

यूं तो उनकी अपनी बखरी, दालान, घर क्या समूचे गांव को चौधराइन चाची की लगातार चलती जबान से तोप के गोलों से दगते संवादों को सुनने की आदत थी, लेकिन उस दिन वे जिस तरह  अजीब से सुर में चीखीं थीं कि घर में जो जहां था आंगन तक दौड़ा चला आया। यहां तक कि छोटे […]

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विभाजित सत्य

क्लीनिक में मरीजों की भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। बीच-बीच में मरीज कम्पाउंडर से पूछ रहे थे, “क्यों भाई, डॉक्टर साहब कितने बजे आएँगे?” बड़ी ही बेरुखी से वह सबको बस एक ही जवाब दे रहा था, “अपने समय से।” सामने बैठी एक युवती बड़ी देर से कमर दर्द से तड़प रही थी। उसके […]

Posted inकहानी, लघुकथा

भय की कगार पर 

सीढ़ियाँँ चढ़ती जैसे ही मैं छत पर पहुँची, इधर से उधर बलखाती गिलहरियाँ, आपस में बतियाते कबूतर और ऊपर आसमान में चमकता सूरज अपनी बुलंदियों पर था। अहा! कितना मनोरम दृश्य था। अचानक मन में ख्याल आया, क्यों न कैद कर लूँ इन सबको अपने कैमरे में…। फोकस बनाया ही था कि एक कबूतर महराज […]

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बिल्ली, बेटा और माँ

चतुर-सयानी, चुस्त-दुरूस्त बिल्ली कई दिनांे से ढ़ीली-ढ़ाली, लस्त-पस्त होती जा रही थी। उसकी यह हालत देख चिड़िया चूहे पहले से बेखौफ हो गये थे। क्योंकि अब वह अपने लिए भोजन का जुगाड़ कर पाने में भी असमर्थ थी। भूखी बिल्ली रोने लगती तो घर से भगा दी जाती।  आज तो वह कुछ ज्यादा ही रो […]

Posted inकहानी, लघुकथा

ऊँचाई

महीनों से बीमार विश्वा का दुनियादारी से जैसे विश्वास ही उठ गया था। अच्छे दिनों में जिनके साथ बनती नहीं थी उनसे तो इन बुरे दिनों में क्या आस थी। परन्तु जिन्हें वह अच्छे साथी समझता था, अपने समझता था, जिनके साथ दाँत काटी रोटी थी, जिनके काम आता था उन्होंने असाध्य बीमारी से ग्रस्त […]

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न खींच मेरी फोटो

वह अपने कंधे पर अपने चार साल के बच्चे को लटकाए बेतहाशा चला जा रहा था। उसके पीछे उसकी पत्नी भी दो साल के अपने बच्चे को अपनी छाती से चिपकाए यंत्रवत् सी चली आ रही थी। तभी एकाएक धप्प से पति सड़क पर बैठ गया और जोर-जोर से हाँफने-काँपने लगा। यह देख उसकी पत्नी […]

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फितरतन

’कल पीटे गये थे। आज फिर तुम आ गये। शर्म नहीं आती क्या? ’हूं तो क्या हुआ? पत्रकार हूं। अपना काम तो करूंगा ही।’ ’तुम अपना काम नहीं करते,सिर्फ हमारे आन्दोलन को बदनाम कर रहे हो। किसानों को देशद्रोही कहते हुए और न जाने क्या-क्या झूठे अरोप-प्रत्यारोप लगा-लगा कर बस गोदी मीडिया का काम कर […]