वह अपने कंधे पर अपने चार साल के बच्चे को लटकाए बेतहाशा चला जा रहा था। उसके पीछे उसकी पत्नी भी दो साल के अपने बच्चे को अपनी छाती से चिपकाए यंत्रवत् सी चली आ रही थी। तभी एकाएक धप्प से पति सड़क पर बैठ गया और जोर-जोर से हाँफने-काँपने लगा। यह देख उसकी पत्नी उसके करीब आ गई और पति के गोद में लेटे, अपनी दोनों आँखों को मूँदें बिलकुल शान्त बेटे को हिलाया-डुलाया, पर उसमें तनिक भी हरकत न हुई। “क्या हुआ मेरे लाल को बताओ.. बताओ ? वह बड़ी हैरत से भर्राए गले से बोली।
अब पति की आँखों से आँसू बहने लगे और बहुत देर से अंदर जमा दर्द का सारा गुबार पिघल कर बाहर आ गया-मर गया मेरा छोटू, मार डाला लाकडॉउन वालों ने।… तब वह दहाड़ मार कर रोते हुए बोली-कब मरा ?
पति चिहुंकते हुए बोला-काफी देर पहले मर चुका था। सोचा था, घर पहुँच कर तुझे बताऊँगा, पर अपने दिल को न संभाल सका और टूट गया।
अब वे तेज धूप में, सड़क किनारे बैठे बिलख रहे थे। साथ में उनका दो साल का बेटा भी रो रहा था। तभी वहाँ कुछ लोग आ गये और कुछ पत्रकार भी। पत्रकार जब उनकी फोटो खीचनें लगे,तो पति-पत्नी ने हाथ जोड़कर रोते हुए कहा-साहब जी सैकड़ों मील पैदल चलते-चलते हमने अपने जीवन का बहुत कुछ खो दिया है। अब अपनी फोटो खिंचवा कर दुनिया भर में अपनी और इज्जत नहीं खोना चाहते, अपनी और रूसवाई नहीं कराना चाहते? पत्रकारों के कैमरे बंद हो गये। जब कोरोना के लाकडॉउन से हैरान, परेशान बहुत से लोग अपनी फोटो खिंचवा-खिंचवा कर सहनुभूति और सहयोग पा रहे थे, तब वहीं यह दम्पति उसे अपनी बेइज्जती और रूसवाई मान रहा था, सच्चाई तो यह है मुसीबत में फंसे कुछ लोग अपनी तस्वीर इस दुनिया को दिखाना चाहते हैं, तो कुछ उस दुनिया बनाने वाले को।
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