‘’मुख़्तार तुम्हें फिर ज़मानत पर रिहा किया जा रहा है आगे से तुम्हारी शक्ल मुझे ठाणे में दिखनी नहीं चाहिए। तुमने हम सभी की नाक में दम कर रखा है।‘’ मुख़्तार के चेहरे पर हवालात से बाहर जाने की खुशी थी तो वही अगले रोज चोरी करने की फिक्र भी थी। मुख़्तार हवलदार साहब के आगे सर झुकाते हुए – “जी हजूर आगे से आपको अपनी शक्ल नहीं दिखाऊँगा, लेकिन माई – बाप और बीबी बच्चे घर में भूखे सो जाते हैं, उनका पेट भरने के लिये चोरी चबाड़ी का काम तो करना ही पड़ेगा ना।” “ऊपर वाले ने दो हाथ दिये है, दो पैर दिये है, दो मोटी मोटी आखें दी है, दिमाग दिया है इन सभी का सही जगह इस्तेमाल करने में शरम आती है क्या ?”

मुख़्तार साथ आए पड़ोसी कल्लू के साथ बिड़ी पीता हुआ बाहर आ जाता है। हवलदार साहब को पक्का यकीन था की मुख़्तार फिर चोरी करता पकड़ा जाएगा। शाम को वह ड्यूटी के बाद एक आम नागरिक की हैसियत से मुख़्तार के यहाँ दस्तक देते हैं। वहाँ पहुँचकर देखते है कि मुख़्तार और उसका परिवार उसके पिता के शव के सामने विलाप करते नजर आते हैं।   

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