सुनो लड़के! जरा इस गार्डन की साफ़-सफाई कर दोगे? कितने पैसे लोगे?” गली में कबाड़ वाले लड़के की आवाज सुनकर रजनी बाहर आई.

“मेरा नाम राजू है मेमसाब! पूरे तीन सौ रूपये लगेंगे. मगर काम देखने के बाद आप भी याद करोगी.” राजू को रजनी का “लड़का” कहना अच्छा नहीं. थोड़ी देर के मोलभाव के बाद दो सौ रूपये में सौदा तय हुआ और राजू अपना झोला एक तरफ रख कर काम में जुट गया. 3-4 घंटों की मेहनत का नतीजा साफ़ दिख रहा था. वह संतुष्ट हो कर भीतर गया.

“देख लीजिये मेमसाब! सारी खर पतवार उखाड़ दी… गमलों को करीने से सजा दिया… और सारा कचरा भी साफ़ कर दिया… अब जरा जल्दी से हिसाब कर दीजिये… बहुत भूख लगी है…” डाइनिंग टेबल पर नाश्ता करते बच्चे को देखकर उसकी आँखों में एक चमक सी कौंध गई. तभी “छन्न…” की आवाज से वह वर्तमान में आया. बच्चे ने खाने की प्लेट जमीन पर पटक दी थी. खाना फर्श पर बिखर गया.

“ठीक है! आती हूँ… तब तक तुम जरा गमलों में पानी डाल दो.” रजनी ने जमीन पर गिरा हुआ खाना समेटते हुए कहा.

“ये लो तुम्हारे दो सौ रूपये… और ये नाश्ता भी कर लेना.” रजनी ने उसे रुपयों के साथ-साथ एक थैली में कुछ खाने का सामान दिया.

राजू ने खाने के सामान को देखा… ये वही फर्श पर बिखरा खाना था… वह जरा सा मुस्कुराया… सड़क पर आया… गली में घूम रहे आवारा कुत्ते के सामने जूठे खाने की थैली पलटी… थैली को अपने झोले में ठूंसा… रुपयों को जेब के हवाले किया और अपना झोला कंधे पर डाल कर चल दिया. उसके चेहरे पर स्वाभिमान की चमक साफ़ नजर आ रही थी.

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