सरकारी दफ्तर में अपना काम निपटा, मैं जल्दी-जल्दी स्टेशन आया। गाड़ी एक घंटे बिलम्ब से आ रही थी। मैंने घर से लाये पराठें निकाले और खाने लगा। तभी एक भिखारी जो हड्डियों का ढांचा मात्र था मेरे पास आकर, हाथ फैला कर चुपचाप खड़ा हो गया। भिखारी के एक हाथ में पहले से ही मांगी […]
साहित्य विमर्ष टीम
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झूठे झगड़े
“अब क्या हुआ ! क्यूं मुंह फुलाये बैठी हो !”रितेश ने ऑफिस से आते ही पूछा ।“बात मत करो मुझसे ! हर बार तुम्हारा यही रहता है ।”रीमा तुनक कर बोली ।“पर बात तो पता चले कुछ !”“इस साल फिर तुम मेरे लिये गिफ्ट लाना भूल गये न !”“अरे हाँ… आज तो तुम्हारा जन्मदिन है […]