Drshtibhed: “माई-बहिनी करिहें दान, धरमी के धन दऽ भगवान!” ज्योंही उसकी करुण रस में सनी आवाज माहौल में पसरी, तिमंजिली कोठी से रोटियों के टुकड़े पहले उसके सिर पर गिरे, फिर जमीन पर छितरा गये। उसे लगा जैसे उसे किसी ने एक जोरदार झापड़ रसीद कर दिया हो। देशी घी में चुपड़ी रोटियाँ धूल से […]
भगवती प्रसाद द्विवेदी
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अंदेशा
गौरैया जी-जान से अंडे को सेती रही। चाहे वह आँगन की मुँडेर पर चहचहाती होती,बगीचे में फुर्र-से उड़कर दाना चुगती होती अथवा पंख फड़फड़ाकर बालू में नहा रही होती-हर पल उसके दिल-दिमाग में अपने अंडे की चिंता ही समाई रहती थी। वह उस दिन की बेताबी से बाट जोह रही थी,जब अंडे से बच्चा निकलकर […]