Posted inकहानी

जिजिविषा

“क्या देख रही हो, माला?” “यह कोई नयी बेल है। अपने आप उग आयी है और देखो कितनी जल्दी- जल्दी बढ़ रही है।“ “अरे, वह तो जंगली है।उखाड़ फेंको उसे।“ “जंगली है, सो कैसे?” “अरे तभी तो बिना देख भाल के इतनी तेजी से बढ़ रही है।“ “हरियाली तो यह भी फैला रही है और […]

Posted inकहानी

साझा चूल्हा

यूं तो उनकी अपनी बखरी, दालान, घर क्या समूचे गांव को चौधराइन चाची की लगातार चलती जबान से तोप के गोलों से दगते संवादों को सुनने की आदत थी, लेकिन उस दिन वे जिस तरह  अजीब से सुर में चीखीं थीं कि घर में जो जहां था आंगन तक दौड़ा चला आया। यहां तक कि छोटे […]