Thand-ka-Sauda Hindi Short Story : “दीदी एक स्वेटर मेरी बच्ची को भी दिला दो, ठंड से कांप रही है बेचारी। भगवान तुम्हारा भला करे”
अपने पीछे एक पहचानी हुई आवाज और संवाद सुनकर मीता ने चौंक कर पीछे देखा।
“तुम, तुम्हारी बच्ची के लिए तो कल ही मैंने स्वेटर खरीद दिया था तो तुमने उसे पहनाया क्यों नहीं। ठंड में खुला क्यों रखा है। वो स्वेटर कहाँ गया?” मीता ने उस मांगने वाली पर नजर पड़ते ही पूछा। कल भी बच्ची ठंड से ठिठुर कर रो रही थी आज भी बहती नाक के साथ आँसू बहाती हुई रो रही थी।
मीता को देख वह सकपका गयी। कुछ जवाब नहीं देते बना।
“अरे मैडम ये तो इसका धंधा ही है। पैसे मांगे तो लोग दया करके दो-पाँच रुपये दे देते हैं इसलिए बच्ची को बिना कपड़ों के रखकर लोगों से स्वेटर माँगती है और फिर उन्ही स्वेटरों को दुबारा दुकान पर बेच देती है तो इसको इकठ्ठे ही सौ-डेढ़ सौ मिल जाते हैं।” पास के एक दुकानदार ने बताया।
“तुम्हे शर्म नहीं आती पैसों के लिए बेचारी बच्ची को ठंड में ठिठुरा रही हो। उसे कुछ हो गया तो।” बच्ची की दशा देखकर मीता का हृदय रो पड़ा। अब उसे दुबारा स्वेटर खरीद भी दे तो उसे पहनाया तो जाएगा नहीं।
“कुछ हो भी जाए तो इसे क्या अगले साल दूसरा आ जाएगा इन लोगों की भूख का इंतज़ाम करने।” पास खड़ी एक भुक्तभोगी बोली।
“नहीं देना तो जाओ न अपने काम से।” वह उपेक्षा से बोलकर बिलखती हुई बच्ची को लेकर आगे दूसरी औरतों के पास चली गयी।
“क्या कहें ऐसे लोगों से जिनके लिए संतान बस लोगों की संवेदनाओं को ठगने का सौदा करके अपनी भूख मिटाने का जरिया भर होती है।”
मीता का मन अभी भी उस बच्ची की ठंड से ठिठुर रहा था।
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