चतुर-सयानी, चुस्त-दुरूस्त बिल्ली कई दिनांे से ढ़ीली-ढ़ाली, लस्त-पस्त होती जा रही थी। उसकी यह हालत देख चिड़िया चूहे पहले से बेखौफ हो गये थे। क्योंकि अब वह अपने लिए भोजन का जुगाड़ कर पाने में भी असमर्थ थी। भूखी बिल्ली रोने लगती तो घर से भगा दी जाती। 

आज तो वह कुछ ज्यादा ही रो रही थी। बिल्ली के रोने को अपशकुन मान उसे घरों से भगाया जा रहा था। वह इस घर से उस घर भागती हुई एक घर में घुस गयी जहाँ कोई डण्डा लिये न खड़ा था। वह वहाँ सुरक्षित सी जगह देख बरामदे में रखे कूलर स्टेंड के नीचे जाकर दुबक गयी। आंगन में खेल रहा रमन दौड़कर उसके पास आया और उसे भगाने लगा।

“चल भाग यहाँ से” उसने झुककर चप्पल दिखाते हुए कहा। परन्तु बिल्ली टस से मस न हुई। इतने में शोभा भी वहाँ आ गयी और दया भाव से बोली

“मत भगा रे रमन इसे” 

“क्यांे माँ सबने तो भगा दिया इसे।” 

“गर्भवती है रे शायद! भूखी भी है तभी कल से रोती हुई भटक रही है।”

बिल्ली की हालत देख शोभा की आँखें नम हो आयी थी।

“पूरे पाठे बच्चों का बोझ उठाये फिर रही है बेचारी।”

रमन हैरान था उसके बालमन ने ऐसा तो सोचा ही नहीं था। 

“जा रमन पतीली से कटोरी में दूध डाल ला। ये पेट की आग है बेटा। ये भी भूखी है और इसके पेट में पल रहे बच्चे भी। देख बेचारी कितनी दुखी है।”

रमन भाग कर कटोरी भर दूध ले आया और बिल्ली के आगे रख दिया। वह कुछ बिस्कुट भी ले आया था। बिल्ली पहले कुछ डरी, फिर दूध पर टूट पड़ी।

“माँ अब ये बच्चे देगी नन्हें-मुन्ने!” वह उत्साह से परिपूर्ण था।

“हाँ रमन”

“माँ, जब तक ये यहाँ रहे आप मेरे हिस्से का दूध इसे दे दिया करना।”

रमन की बात सुन शोभा की आँखों में खुशी के आँसू छलक आये। अगली पीढ़ी उसका सन्देश ग्रहण कर चुकी थी।

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