गर्मी की तपती दोपहरी… चमकती डामर की सड़क… बार-बार बुशर्ट की बाँह से पसीना पौंछता कालू चुपचाप चले जा रहा था. अपने आसपास से बेखबर उसके दिमाग में रह-रहकर वो बच्चा घूम रहा था जो अभी रास्ते में दुकान पर खड़ा आइसक्रीम खा रहा था.

“कैसा होगा उसका महंगी वाली कुल्फी का स्वाद… कौन जाने… यहाँ तो रिरियाकर भी वो संतरे के स्वाद वाली कुल्फी ही नसीब होती है… वो भी कभीकभार ही… उसे भी छोटे भाई के साथ मिलकर चूसना पड़ता है…” कालू मन ही मन आइसक्रीम के स्वाद को महसूसता हुआ चला जा रहा था. अचानक सामने चौराहे पर उसकी नजर पड़ी. कालू ठिठक गया.

लाल सिंदूर की कार देकर बना गोल घेरा… उसमें रखी काली हांडी… एक कपड़े में मोली से लपेटा हुआ कुछ सामान… हाँ! एक नारियल भी… और… और… ये उसके नीचे क्या दबा है… पचास का नोट…” नये नकोर नोट को देखते ही कालू की आँखों में चमक आ गई. आइसक्रीम के स्वाद की कल्पना करके उसने अपने पपड़ाये होठों पर जीभ फेरी. वह गोले के थोड़ा और पास गया.

“हाँ! है तो नोट ही.” कालू ने हाथ खुदबखुद नोट की तरफ बढ़ गए.

“चौराहों पर कोई टोटका दिखे तो दूर से निकलना… ध्यान रखना, चक्कर में पैर ना पड़े… वरना अला-बला गले पड़ जाती है.” माँ की बात याद आते ही कालू का बढ़ता हाथ रुक गया. आइसक्रीम फिर से आँखों में नाचने लगी. कालू ने ललचाई नजरों से नोट को देखा… आगे-पीछे, आसपास का जायजा लिया.

सड़क किनारे लगे जंगली बबूल की पतली टहनी तोड़ कर उसने नारियल को धीरे से धक्का दिया. नारियल एक तरफ लुढ़क गया. पचास का नोट अब आजाद था. हवा का एक झौंका आया और नोट उड़कर लाल घेरे से बाहर आ गया.

कालू ने लपककर नोट को अपने कब्जे में लिया और उसी दुकान पर पहुँचा जहाँ वो बच्चा आइसक्रीम खा रहा था. लाल घेरे का डर आइसक्रीम के स्वाद में घुलने लगा.

(Visited 1 times, 1 visits today)

Republish our articles for free, online or in print, under a Creative Commons license.