Jagah kee talaash mein hindi story: तृप्ति पूजा की थाल लिए जैसे ही घर से निकल मन्दिर की ओर बढी उसके कदम ठीठकने लगे.वह सुबह को चीरती हुइ सन्नाटे से डर कर वापस घर को आ गई.
— अरे ! कुछ भूल गई क्या ? माँ ने जिज्ञासा भरे लहजे मे पूछा .
— नही मम्मी, सड़क की सन्नाटे से डर गई.
— अरे ! अब तो सुबह हो चुके हैं , वो देख – दो भईया भी घूम रहे हैं.तुम जानती नही क्या उन्हे ?
मम्मी दरवाजा खोल सड़क पर आ खड़ी हो गई.
— हाँ मम्मी मैं अच्छी तरह जानती हुँ उन्हें , वो केवल भइया नही दो युवा हैं, युवा !
— कोई बात नही, जा मैं यहीं खड़ी हुँ.जल्दी आ जाना स्कूल भी तो जाना है.
तृप्ति फिर से घर से निकलते हुए – ओके, बॉय मॉम ! कहते हुए आगे बढ़ गई. सच ! बाहर का अँधेरा तो छँट चूका था., लेकिन मन का अँधेरा अभी भी कायम था.
वह घर से निकल चौराहे तक पहुँची ही थी कि उसके कानो मे कुछ अप्रत्याशित शब्द गूँज उठे. लगा जैसे लड़कों ने फब्तियाँ कसी हो.
— उसने पीछे मुड़कर दुस्साहस दिखाते हुए पूछ डाला – भइया जी आपने मुझे कुछ कहा क्या ?
— नही तो….! समवेत स्वर उभरा.
” दरअसल हम दोनो दो धर्म के हैं , तो निश्चय नही कर पा रहे थे कि तुम्हे उठाकर किस सुरक्षित जगह पर ले जाऊँ. मन्दिर मे या मस्जिद मे ! ” हा…हा…हा ! दोनो के ठहाके से उसका सिर चकराने लगा था.
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