Sookhee Nadee Short Story: भारी कदमों से अस्थि-कलश हाथों में थामे राजू अपने कुछ संबंधियों के साथ संगम तट पर पहुँचा। कङाके की ठंड वाला महीना था। उसकी आँखों की कोरों में नमी और मन गमगीन था। वह अस्थि विसर्जन का कार्य शीध्र ही निपटा लेना चाहता था।
वह अभी नाव की ओर बढा ही था कि एक बूढी महिला उसके साथ हो ली। राजू संगम की धार पर गया और वह किनारे पर उसका इंतजार करती रही।वापसी पर उस बूढी अम्मा ने बेहद, बेबसी से हाथ फैलाकर पूङी माँगी और कहा-
बेटा भिखारिन नही हूँ मैं, मेरा बेटा बीते बरस मुझे यहाँ छोङ गया। हतप्रभ…राजू इस पर विश्वास न करता,यदि वहाँ का पंडा इसकी पुष्टि न करता।
पंडे ने बताया- हर साल और खासकर कुंभ मेले में कई लोग अपनी बूढी,बेबस माँओं को तीर्थ कराने के बहाने लाकर उन्हें हमेशा के लिए यहाँ छोङ जाते हैं।अनपढ और बूढी होने के कारण वे कभी भी अपने घर लौट नही पाती।
ये सुनकर राजू अंदर तक काँप गया और सोचने लगा- कितना हृदय विदारक सत्य है ये कि अदृश्य सरस्वती की तरह संगम में बूढी माओं के आँसुओं की एक सूखी नदी भी बहती है। अपना कार्य संपन्न करने के पश्चात वह तट पर बैठी उस बूढी अम्मा को भोजन करवाने लगा।
उसके चेहरे पर अब तृप्ति के भाव थे।
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