“सुना है.. हमारी पडोसी मिसेज गुलाटी की तबियत काफी समय से खराब चल रही है, मुझे तो वक्त नही मिल पाता, लेकिन तुम तो दिन भर घर रहती हो, कल वक्त निकाल कर उनसे मिलकर जरूर आना।” घर आते ही सुधांशु ने पत्नी सीमा से कहा।
“मेरे मिलने से कौन सा मिसेज गुलाटी की तबीयत ठीक हो जाएगी ?” ठीक तो तभी होगी न जब उनके बेटे बहू अच्छे से डाॅक्टर को दिखाकर समय-समय पर दवा पानी का ख्याल रखेंगे । वैसे भी मेरे मिलने से उनके ठीक होने का क्या तालुक?’ सुधांशु को सीमा से इस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद नही थी, उसने ज्यादा बहस करना उचित नहीं समझा और वहां उठकर अपने कमरे की और चल दिया।
अगले दिन सुबह सुबह एम्बुलेंस की आवाज से सीमा की आंख खुली। झट से उसने खिड़की खोलकर बाहर झांका तो मिसेज गुलाटी के घर के आगे तो मातम पसरा था। आसपास के कुछ लोगों व रिश्तेदारों को गमगीन मुद्रा में देख सीमा को हालात समझने में देर नही लगी।
वो नींद में सोये सुधांशु को जगाते हुए बोली- ‘सुनते हो, लगता हैं मिसेज गुलाटी अब नही रही, अभी-अभी एम्बुलेंस उन्हे घर छोड़कर गयी है, उनके घर के आगे लोगों की भीड़ लगी है। सामने वाले शर्मा जी और बगल वाले खन्ना साहब भी वहीं खड़े हैं।’ जल्दी से उठो और उनके अंतिम संस्कार में जाने की तैयारी करों।”
‘जब किसी बीमार से मिलने पर उसकी तबीयत ठीक नहीं होती तो फिर अंतिम संस्कार में जाने से कोनसा मिसेज गुलाटी वापिस आ जायेंगी।’ सुधांशु के मुंह से तंज भरे ये शब्द सुनकर सीमा उसका इशारा समझ चुकी थी।’
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